सिकंदर जहां बेगम; 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का दिया साथ, सेना में सैलरी शुरु करने वाली भोपाल की दूसरी महिला नवाब
भोपाल का इतिहास नवाबों के शासनकाल से जुड़ा है, लेकिन एक दुखद घटना ने इस इतिहास का रुख बदल दिया।
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भोपाल का इतिहास नवाबों के शासनकाल से जुड़ा है, लेकिन एक दुखद घटना ने इस इतिहास का रुख बदल दिया। बेगम्स ऑफ भोपाल के पिछले भाग में हमने पढ़ा कि 1819 में, नवाब नज़ीर मुहम्मद खान की एक हादसे में मृत्यु हो गई। एक बच्चे द्वारा चलाई गई गोली नवाब को लग गई और इस घटना ने भोपाल की सत्ता के भविष्य को अनिश्चितता में डाल दिया। ऐसे समय में, नवाब की पत्नी कुदसिया बेगम ने असाधारण साहस का परिचय दिया। उन्होंने अपना पर्दा हटाया और खुद को शासिका घोषित किया। यह एक क्रांतिकारी कदम था, जिसने न केवल भोपाल के इतिहास को बदल दिया, बल्कि महिला सशक्तिकरण की एक नई मिसाल भी कायम की।
अंग्रेजों और कुदसिया बेगम के समझौते अनुसार जहांगीर युवा और अनुभवहीन था, इसलिए कुदसिया बेगम ने उसकी जगह राज्य का कार्यभार संभाला और शासन किया। सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए क़ुदसिया बेगम ने अपनी बेटी की शादी में देरी की। उनके प्रयासों के बावजूद, सिकंदर बेगम ने 17 अप्रैल, 1835 को जहांगीर मुहम्मद खान से शादी कर ली। शादी के बाद भी, कुदसिया बेगम ने राज्य पर शासन करना जारी रखा, जिसके कारण उनके दामाद, नवाब जहांगीर मुहम्मद खान से मतभेद हो गए। समय के साथ-साथ नवाब और सिकंदर बेगम के बीच भी तनाव बढ़ता गया।
दोनों बेगम को कैदी बनाने की कोशिश
एक दिन, एक दावत के दौरान, नवाब ने कुदसिया बेगम और सिकंदर बेगम को जबरदस्ती कैद करने की कोशिश की। हालांकि, दोनों बेगमें अपने महल में भागने में सफल रहीं और नवाब को पकड़ने के लिए एक सैन्य दल भेजा। बदली परिस्थितियों से परेशान और उम्र के प्रभाव के बाद कुदसिया बेगम अंततः भोपाल पर शासन करने से हट गईं। बदले में उन्हें 5 लाख का वार्षिक भत्ता दिया गया। 1877 में, उन्हें ऑर्डर ऑफ द इंपीरियल क्रॉस से सम्मानित किया गया। चार साल बाद 82 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने अपनी निजी संपत्ति अपनी पोती शाहजहां के लिए छोड़ दी।
मां की तरह बेटी भी बनी 'रीजेंट'
इसके बाद नवाब जहांगीर मोहम्मद खान की मृत्यु हुई और उनकी उत्तराधिकारी उनकी बेटी शाहजहां बेगम बनीं। चूंकि शाहजहां बेगम कम उम्र की थीं, इसलिए उनकी मां सिकंदर बेगम (कुदसिया बेगम की बेटी) को रीजेन्ट नियुक्त किया गया। शुरुआत में प्रशासन में दोहरी व्यवस्था थी, जिससे कुछ विवाद भी हुए। लेकिन जल्द ही सिकंदर बेगम ने पूरी तरह से प्रशासन की बागडोर संभाल ली।
21 साल तक किया भोपाल पर राज
सिकंदर बेगम ने भोपाल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 21 साल के राज में उन्होंने राजस्व वसूली की पुरानी ठेकेदारी प्रथा को खत्म कर दिया। उन्होंने सीधे ग्राम प्रमुखों से राजस्व वसूली का प्रबंध किया। इससे किसानों को राहत मिली और राजस्व में भी वृद्धि हुई। उन्होंने व्यापार पर से एकाधिकार भी हटा दिया, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला। भूमि की पैमाइश चेन पद्धति से करवाई गई और रियासत को तीन संभागों और 21 उप-संभागों में बांटा गया। रियासत की सीमाओं का पहली बार निर्धारण हुआ, जिससे पड़ोसी राज्यों से होने वाले विवादों में कमी आई।
भोपाल के विकास में योगदान
सेना के लिए सिकंदर बेगम ने नियमित वेतन का प्रबंध किया। इससे सेना का मनोबल बढ़ा और रियासत की सुरक्षा मजबूत हुई। पुलिस व्यवस्था को भी सुधारा गया और दूर-दराज के इलाकों में पुलिस चौकियां स्थापित की गईं। इन सबके कारण रियासत में कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर हुई। सिकंदर बेगम ने अपने कुशल प्रशासन से रियासत के तीस लाख रुपये के कर्ज को चुका दिया। उन्होंने शिक्षा के प्रसार पर भी ध्यान दिया और बाहर से विद्वानों को आमंत्रित किया। एक बड़ा बदलाव प्रशासनिक और अदालती कामकाज में फ़ारसी की जगह उर्दू को लागू करना था। इससे आम लोगों को सरकारी कामकाज समझने में आसानी हुई।
मजलिस-ए-शूरा का गठन
सिकंदर बेगम ने 'मजलिस-ए-शूरा' नामक एक सभा का गठन किया। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों, बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों को शामिल किया गया था। कोई भी कानून लागू करने से पहले मजलिस में उस पर विचार-विमर्श किया जाता था।
खुद सुनती थीं लोगों की समस्याएं
जनता की सुविधा के लिए सड़कों का निर्माण करवाया गया। सिकंदर बेगम खुद गांवों का दौरा करती थीं और लोगों की समस्याएं सुनती थीं। 1860 में उन्होंने दिल्ली की जामा मस्जिद की तर्ज पर भोपाल में एक भव्य जामा मस्जिद का निर्माण करवाया।
अंग्रेजों के साथ संबंधों को लेकर विवाद
1857 की क्रांति के दौरान, सिकंदर बेगम ने अंग्रेजों का साथ दिया। उन्होंने गढ़ी अम्बापानी और सीहोर के विद्रोहियों को कुचलने में अंग्रेजों की मदद की। इसके परिणामस्वरूप, अंग्रेजों ने उन्हें 1860 में भोपाल की नवाब घोषित कर दिया। उन्हें बेरसिया, परगना भी इनाम के तौर पर दिया गया।
इतिहासकारों में मतभेद
हालांकि, उनके इस फैसले पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इसे देशद्रोह मानते हैं, जबकि कुछ इसे राजनीतिक मजबूरी बताते हैं। बहरहाल, सिकंदर बेगम का व्यक्तित्व और कार्यकाल इतिहास के पन्नों में दर्ज है। सिकंदर बेगम की कहानी, एक ऐसी महिला की कहानी है जिसने अपने समय में पुरुष प्रधान समाज में एक शासक के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके फैसलों, उनके कार्यों, उनकी नीतियों और उनकी दूरदर्शिता ने भोपाल को एक नई दिशा दी।
कहानी के दूसरे भाग में इतना ही, अगले भाग में जानिए कैसे बेगम नवाब सिकंदर जहां की मृत्यु के बाद शाहजहां बेगम को सत्ता सौंपी गई और शाहजहां बेगम ने कैसे कुछ ही सालों में भोपाल की कायापलट कर दी।
बेगम्स ऑफ भोपाल का पहला भाग-
अंग्रेजों और कुदसिया बेगम के समझौते अनुसार जहांगीर युवा और अनुभवहीन था, इसलिए कुदसिया बेगम ने उसकी जगह राज्य का कार्यभार संभाला और शासन किया। सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए क़ुदसिया बेगम ने अपनी बेटी की शादी में देरी की। उनके प्रयासों के बावजूद, सिकंदर बेगम ने 17 अप्रैल, 1835 को जहांगीर मुहम्मद खान से शादी कर ली। शादी के बाद भी, कुदसिया बेगम ने राज्य पर शासन करना जारी रखा, जिसके कारण उनके दामाद, नवाब जहांगीर मुहम्मद खान से मतभेद हो गए। समय के साथ-साथ नवाब और सिकंदर बेगम के बीच भी तनाव बढ़ता गया।
दोनों बेगम को कैदी बनाने की कोशिश
एक दिन, एक दावत के दौरान, नवाब ने कुदसिया बेगम और सिकंदर बेगम को जबरदस्ती कैद करने की कोशिश की। हालांकि, दोनों बेगमें अपने महल में भागने में सफल रहीं और नवाब को पकड़ने के लिए एक सैन्य दल भेजा। बदली परिस्थितियों से परेशान और उम्र के प्रभाव के बाद कुदसिया बेगम अंततः भोपाल पर शासन करने से हट गईं। बदले में उन्हें 5 लाख का वार्षिक भत्ता दिया गया। 1877 में, उन्हें ऑर्डर ऑफ द इंपीरियल क्रॉस से सम्मानित किया गया। चार साल बाद 82 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने अपनी निजी संपत्ति अपनी पोती शाहजहां के लिए छोड़ दी।मां की तरह बेटी भी बनी 'रीजेंट'
इसके बाद नवाब जहांगीर मोहम्मद खान की मृत्यु हुई और उनकी उत्तराधिकारी उनकी बेटी शाहजहां बेगम बनीं। चूंकि शाहजहां बेगम कम उम्र की थीं, इसलिए उनकी मां सिकंदर बेगम (कुदसिया बेगम की बेटी) को रीजेन्ट नियुक्त किया गया। शुरुआत में प्रशासन में दोहरी व्यवस्था थी, जिससे कुछ विवाद भी हुए। लेकिन जल्द ही सिकंदर बेगम ने पूरी तरह से प्रशासन की बागडोर संभाल ली।21 साल तक किया भोपाल पर राज
सिकंदर बेगम ने भोपाल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 21 साल के राज में उन्होंने राजस्व वसूली की पुरानी ठेकेदारी प्रथा को खत्म कर दिया। उन्होंने सीधे ग्राम प्रमुखों से राजस्व वसूली का प्रबंध किया। इससे किसानों को राहत मिली और राजस्व में भी वृद्धि हुई। उन्होंने व्यापार पर से एकाधिकार भी हटा दिया, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला। भूमि की पैमाइश चेन पद्धति से करवाई गई और रियासत को तीन संभागों और 21 उप-संभागों में बांटा गया। रियासत की सीमाओं का पहली बार निर्धारण हुआ, जिससे पड़ोसी राज्यों से होने वाले विवादों में कमी आई।भोपाल के विकास में योगदान
सेना के लिए सिकंदर बेगम ने नियमित वेतन का प्रबंध किया। इससे सेना का मनोबल बढ़ा और रियासत की सुरक्षा मजबूत हुई। पुलिस व्यवस्था को भी सुधारा गया और दूर-दराज के इलाकों में पुलिस चौकियां स्थापित की गईं। इन सबके कारण रियासत में कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर हुई। सिकंदर बेगम ने अपने कुशल प्रशासन से रियासत के तीस लाख रुपये के कर्ज को चुका दिया। उन्होंने शिक्षा के प्रसार पर भी ध्यान दिया और बाहर से विद्वानों को आमंत्रित किया। एक बड़ा बदलाव प्रशासनिक और अदालती कामकाज में फ़ारसी की जगह उर्दू को लागू करना था। इससे आम लोगों को सरकारी कामकाज समझने में आसानी हुई।मजलिस-ए-शूरा का गठन
सिकंदर बेगम ने 'मजलिस-ए-शूरा' नामक एक सभा का गठन किया। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों, बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों को शामिल किया गया था। कोई भी कानून लागू करने से पहले मजलिस में उस पर विचार-विमर्श किया जाता था।खुद सुनती थीं लोगों की समस्याएं
जनता की सुविधा के लिए सड़कों का निर्माण करवाया गया। सिकंदर बेगम खुद गांवों का दौरा करती थीं और लोगों की समस्याएं सुनती थीं। 1860 में उन्होंने दिल्ली की जामा मस्जिद की तर्ज पर भोपाल में एक भव्य जामा मस्जिद का निर्माण करवाया।अंग्रेजों के साथ संबंधों को लेकर विवाद
1857 की क्रांति के दौरान, सिकंदर बेगम ने अंग्रेजों का साथ दिया। उन्होंने गढ़ी अम्बापानी और सीहोर के विद्रोहियों को कुचलने में अंग्रेजों की मदद की। इसके परिणामस्वरूप, अंग्रेजों ने उन्हें 1860 में भोपाल की नवाब घोषित कर दिया। उन्हें बेरसिया, परगना भी इनाम के तौर पर दिया गया।इतिहासकारों में मतभेद
हालांकि, उनके इस फैसले पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इसे देशद्रोह मानते हैं, जबकि कुछ इसे राजनीतिक मजबूरी बताते हैं। बहरहाल, सिकंदर बेगम का व्यक्तित्व और कार्यकाल इतिहास के पन्नों में दर्ज है। सिकंदर बेगम की कहानी, एक ऐसी महिला की कहानी है जिसने अपने समय में पुरुष प्रधान समाज में एक शासक के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके फैसलों, उनके कार्यों, उनकी नीतियों और उनकी दूरदर्शिता ने भोपाल को एक नई दिशा दी।कहानी के दूसरे भाग में इतना ही, अगले भाग में जानिए कैसे बेगम नवाब सिकंदर जहां की मृत्यु के बाद शाहजहां बेगम को सत्ता सौंपी गई और शाहजहां बेगम ने कैसे कुछ ही सालों में भोपाल की कायापलट कर दी।
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